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नमिऊणस्तोत्रम् ॥
( छाया ) यः संतुष्टहृदयेन पार्श्वस्यस्मरणं करोति तरय अष्टोत्तरशतव्याधिभया दूरेण नश्यन्ति ॥ २४ ॥ ( विवरणम् )
यो जीवः संतुष्ट शान्तं हृदयं मानसं तेन पार्श्वस्य - पार्श्वभगवतः स्मरणं ध्यानं करोति तस्य जीवस्य अष्टोत्तरशतसंख्याकव्याधिजभयानि दूरत एव नश्यन्ति नाशं प्राप्नुवन्ति ॥ २४ ॥
( पदार्थ )
( जो ) जो जीव (संतुहिययेण ) शान्त अंतःकरण से ( पासह) पार्श्वप्रभुका ( समरण ) स्मरण (कुणइ) करता है ( तस्स ) उसके ( अट्ठुत्तरस्य ) एक्सोआठ (वाहिभय) व्याधिभय ( दूरेण ) दूरसेही (नासइ) नष्ट होते हैं ॥ २४ ॥
( भावार्थ )
जो जीव आद्ररौद्रध्यान छोडकर प्रसन्न हृदय से पार्श्वप्रभुका स्मरणकरता है उसके एकसोआठ व्याधियोंसे पैदा होनेवाले भय दूरसेही नष्ट हो जाते हैं ॥ २४ ॥ इति श्रीमानतुंगाचार्यकृतश्रीमहाभयनामक स्तोत्रमिन्दुर जैन श्वेताम्बर पाठशालामुख्याध्यापक श्रीगोपीनाथसुनु पण्डितश्री कृष्णशर्मकृतसुबोधिन्यारव्यटीकासंवलितं सम्पूर्णम् ॥