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________________ नमस्तोत्रम् ॥ ३३ ऊणपासविसहरवसहजिण फुलिंग” इति यो मन्त्रोऽस्तितं यः जानाति सद्गुरूपदेशतः सम्यग्वोत्ति सएव स्फुटं प्रकटं यथास्यात्तथा परमं पदंस्थानं मोक्षास्व्यं तत्र तिष्ठतीति तं पार्श्व पार्श्वभगवन्तं ध्यायति सम्यग्ध्यानपथं नयति ॥ २३ ॥ (पदार्थ) ( एअस्स) इस नमिऊणस्तोत्र के ( मध्मयारे ) मध्यभागमे (अट्ठारसअक्खरेहिं) अठारह अक्षरोंका (जो मंतो) जो मंत्र है . उसमंत्रको ( जो ) जो मनुष्य ( जाणइ ) सद्गुरूपदेश से जानता है (सो) वह (फुडं ) प्रकट ( परमपयत्थं ) उत्कृष्टमोक्षरूपस्थान में उपस्थित ( पासं) पार्श्वप्रभुका (उझायइ ) ध्यानकरता है ॥ २३ ॥ ( भावार्थ ) जो मनुष्य इस नमिऊणस्तोत्रके मध्यभागमें सूचित अठारह अक्षरोंके " चिंतामणि " नामक अत्यन्त गुप्त मंत्रको सद्गुरु के उपदेशसे सम्यक जानता है वहही मनुष्य उत्कृष्ट मोक्षाख्यस्थान में स्थित पार्श्वप्रभुका ध्यान करसकता है || २३ ॥ 1 ॥ गाथा ॥ पासह समरण जो कुणइ संतुठे हिययेण अत्तर सयवाहि भय नासर तस्स दूरेण ॥ २४ ॥
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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