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नमिऊणस्तोत्रम् ॥
कियेसते ( जो ) जोपार्श्वप्रभु ( ज्झाणाउ ) ध्यानसे (न) न ( संचलिउ) चलायमानहुए (सुर ) देवता ( नर ) भव्यजीव ( किन्नर ) गंधर्व ( जुवइहिं ) देवाङ्गनाओंसे ( संथुउ ) स्तुतिकिएगए ऐसे (पासजिणो) पार्श्वप्रभु ( जयउ ) विजयशालीहोवें ॥ २२ ॥
(भावार्थ) . कमठासुरने अत्यन्त त्रास देने परभी जो पार्थप्रभु अपने ध्यानसे न संचलितहुए और देवता भव्यजीव गंधर्व और देवाङनाओंसे स्तुतिकिएगए ऐसे भगवान् पार्वजिन विजयी होवें ॥ २२ ॥
॥गाथा ॥ एअस्स मप्भयारे अहारस अक्खरोहिं जो मंतो। जो जाणइ सो ज्झायइ परम पयत्थं फुडं पासं ॥ २३ ॥
(छाया) - एतस्य मध्यभागे अष्टादशाक्षरैः ( निर्मितः ) यः मंत्रः अस्ति तं ( मंत्रं ) यः जानाति सः स्फुटं परमपदस्थं पाच ध्यायति ॥ २३ ॥
(विवरणम् ) एतस्य " नमिऊणाख्यास्तोत्रस्य " मध्यभागे "नमि