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________________ नमिऊण स्तोत्रम् ॥ ३१ समय में और रात्रिमें जो मनुष्य इस स्तोत्रको भक्तिपूर्वक पठन करता है या श्रवण करता है उसके और मानतुंगाचार्य के पापका त्रिभुवनने पूजे हैं चरणकमल जिनके ऐसे पार्श्वप्रभु नाशकरते हैं ॥ २०-२१ ॥ अनया गाथया पार्श्वभगवतोऽतिशयो वर्ण्यते । ॥ गाथा ॥ उवसग्गंत कमठा सुरभि ज्झाणाउ जो नसंच - लिउ । सुरनरकिन्नर जुवइहिं संधु जयउ प्रास जिणो ॥ २२ ॥ ( छाया ) कमठासुरे उपसर्गकुर्वतिसति यः ध्यानात् न सञ्चलितः ससुरनरकिन्नरयुवतीभिः संस्तुतः पार्श्वजिनः जयतु ॥२२॥ ( विवरणम् ) कमठासुरे कमठदैत्ये उपसर्ग उपद्रवं कुर्वति आचरतिसति यः पार-देवः ध्यानात् नियतविषयकचित्तैकाग्र्यात् न सञ्चलितः न स्खलितः स सुराः देवाः नराः भव्यजनाः किन्नराः गंधर्वाः युवत्यः देवाङ्गनाः ताभिः स्तुतः नुतः एतादृशः पार्श्वजिनः जयतु सर्वोत्कर्षेण वर्तताम् ॥ २२ ॥ ' ( पदार्थ ) ( कमठासुरम्म ) कमठाने ( उवसग्गंते ) उपसर्ग
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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