SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नमिऊणस्तोत्रम् ॥ तस्य, स्तुतिकर्तुनितुंगाचार्यस्य चाखिलपापराशिमखिलभुवनपूजितचरणकमलः पार्श्वदेवः प्रशमयतु ॥ २०-२१ ॥ (पदार्थ) (रायभय ) राजभय (जवख ) यक्षभय (रक्खस) राक्षसभय ( कुसुमिण ) कुस्वप्नभय ( दुस्सउण ) दुःशकुनभय (विख) अशुभग्रह इन्होंकी ( पीडासु) पीडासमयमें और ( दोसु संझासु) प्रातःकाल और सायंकाल में (पंथे ) अरण्यादिमार्गमें (उदसम्गे) देव और मनुष्यकृत उपसर्गोमें ( तहय ) और वेसेही ( रयणीसु ) रात्रिओं में ( जो ) जो मनुष्य " इस स्तोत्रको " ( पढइ ) पठनकरता है (जो अनिसुणइ) और जो भक्तिपूर्वक सुनताहै ( ताणं ) उन्होंके (य) और (कइणों) स्तोत्रकर्ता (माणतुंगस्स) मानतुडाचार्य के ( पावं ) पापको ( सयल ) सम्पूर्ण ( भुवणच्चिअ) लोकमें अर्चितहैं (चलणो) चरण जिनके ऐसे (पासो) पार्श्वभगवान (पसमेड) नाशकरो ॥ २०-२१ ॥ (भावार्थ) राजभय यक्षभय राक्षसभय कुस्वप्नभय अशुभग्रहभय इन भयोंसे पीडितहोनेपर, प्रातःकाल सायंकालमें, अरण्यादिभयानक मार्गमें, देव और मनुष्यकृत संकट
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy