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________________ नमिऊणस्तोत्रम् ॥ (विवरणम् ) व्याधिजभयं जलजभयं अग्निभयं सर्पजभयं तस्करादिरिपुभयं सिंहभयं करिभयं संग्रामभयं एतान्यष्टभयानि पार्वजिनेश्वरस्य नामस्मरणमात्रेणैव स्वयमेव प्रशाम्यन्ति उपशमं यान्ति ॥ १८ ॥ (पदार्थ). . (पासाजण ) पार्श्वजिनेश्वरके ( नामसंकित्तणेण) नामकीर्तनसे ( सव्वाई ) सम्पूर्ण ( रोग ) कुष्टादिरोग ( जल ) पानी ( जलण ) अग्नि (विसहर ) सर्प ( चोरारि ) तस्करादिशत्रु ( मइन्द ) सिंह ( गय ) हाथी ( रण ) संग्राम एतत्संबन्धि ( सव्वाई) सर्व ( भयाइं ) भय (पसमन्ति ) रूयं ही शान्त होते हैं ॥ १८ ॥ ( भावार्थ ) अब एक गाथामें पूर्वोक्त अष्टभयनिवारण ___ रूप अतिशय कहते हैं। पार्वजिनेश्वरके नामकीर्तनसे रोगभय, जलभय, आग्निभय, सर्पभय, चोरादिशत्रुभय, सिंहभय, करिमय तथा संग्रामभय ये आठ भय स्वयंही शान्त होतेहैं ॥१८॥
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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