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नमिऊणस्तोत्रम् ॥
( भावार्थ ) अब गाथा द्वयसे पाचप्रभुका आठवां संग्रामभय
विनाशनरूप महिमा कथन करतेहैं।' हे पार्श्वनाथ हे पापध्वंसक जीतलियेहैं शूरताके गर्वसे मदान्ध प्रतिपक्षी राजाओंके समुदाय जिन्होंने ऐसे शूरपुरुष तीक्ष्ण खड्गोंके प्रहारसे छिन्नहोनेकेकारण बेरोक इधर उधर नाचने लगे, मस्तकरहित धड जिसमें
और भालोसे छिदेहए हाथियोंके बालकोंके मखसे निकले हुए सत्किारोंसे प्रपूरित संग्राममें आपके प्रभावसे उज्वल यशको प्राप्त करलेतेहैं ॥ १६-१७ ॥ अधुना एकया गथया पूर्वोक्ताष्टभयानरासकत्व
महिमा वर्ण्यते ।
॥ गाथा ॥ रोगजलजलणविसहरचोरारिमइंदगयरणभयाई । पासजिणनामसंकित्तणेण पसमति सवाई ॥१८॥
. (छाया) पार्शजिननामसंकीर्तनेन सर्वाणि रोगजलज्वलनविषधरचोरारिमगेन्द्रगजरणभयानि प्रशाम्यान्त ॥ १८॥