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नमिऊणस्तोत्रम् ॥
मए (जलहरारावं ) मेघके शब्दके सरीखाहै शब्द जिसका ( भीमं ) ऐसे भयंकर (महागइंदं) महान् हाथी को (अच्चासन्नपि ) अतिशय पास आनेपर भी (न विगणन्ति ) नहीं गिनते ॥ १४-१५ ॥
(भावार्थ) - अब दो माथाद्वारा प्रभुपार्श्वका सातवां गजभय - निवारणरूप प्रभाव संकीर्तन करते हैं।
हे नाथ जो मनुष्य आपके अतिश्रेष्टचरणयुगलका आश्रय लेतेहैं वे चांदके समान सफेद दांत ये ही मुसल हैं जिसको, लंबी सूंडके हिलानेसे बढ़गया है उत्साह जिसका, मधु समानहै पीला नेत्रयुगल जिसका और जलसे भरेहुए मेघके समानहै शब्द जिसका ऐसा भयंकर बडाहाथी अतिसमीप होनेपरभी उसे नहीं गिनतेहैं अर्थात उससे भयभीत नहीं होतेहैं ॥१५-१५॥ ... अथ गाथायुगलेन पाइर्वप्रभोरष्टमः संग्राम
भयापहारातिशयो वर्ण्यते ।
.. ॥ गाथा ॥ समरम्मि तिक्खखग्गा भिग्यायपविद्धउद्धृयकवंधे कुंतविणि भिन्नकारकलह मुक्कासिकार पउरम्मि ॥१६॥