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________________ नमिऊणस्तोत्रम् ॥ ( पदार्थ) ( भिल्ल ) भील ( तकर ) चौर ( पुलिंद ) वनचर जीव ( सहुल ) सिंहोंके ( सद्द ) मारोमारो आदिशब्दों से ( भीमासु ) भयंकर, ( भय ) डरसे ( विहुल ) व्याकुल ( बुन्न ) दुःखित और ( अकायर ) निडर भीलोंसे ( उल्लूरिअ ) लूटलिये गएहैं (पहिअसत्थासु) पथिकसमुदाय जिन्होंके विषय ऐसे ( अडवीसु ) गहन वनोंमें ( नाह ) हे नाथ (तुह ) आपको (पणाममत्त) प्रणाममात्र है ( वावारा ) व्यापार जिन्होंका ऐसे होने सेही ( अविलुत्त ) नलूटागयाहै (विहवसारा ) उत्कृष्टधन जिन्होंका ऐसे जन (सिग्धं ) जलदी ही ( वगय) विशेषतः नष्ट होगए हैं (विग्घा) विघ्न जिन्होंके ऐसे होकर ( हिय ) हृदयमें ( इच्छियं ) अभिलषित ( ठाणं ) स्थानको ( पत्ता ) प्राप्त होते हैं ॥ १०.११ ॥ (भावार्थ) अब दो गाथाओंसे प्रभुका तस्करभयनिवारणरूप अतिशय कथन करते हैं। जो भील, चोर, बनमें संचारकरनेवाले जीव और सिंह
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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