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नमिऊणस्तोत्रम् ॥
फणा यस्य भीषणः भयङ्करः स्फुरिते चपले अरुणे रक्ते नयने नेत्रे यस्य तरला चञ्चला जिव्हा रसना यस्य तादृशः नवः नूतनः जलदः मेघः तत्समानः भषिणः आकारः आकृतिः यस्य यहा भीषणः भयप्रदः आचारः आचरणं यस्य एतादृशं उग्रभुजंगं प्रचण्डसर्प कीटसदृशं तुच्छजन्तुसमानं मन्यते गणयन्ति ॥ ८.९ ॥
( पदार्थ) ( नरा ) मनुष्य ( लोए ) इस लोकमें ( तुह ) आपके ( नामस्कर ) नामाक्षर वहही मानो ( फुड ) प्रख्यात और ( सिद्ध ) सिद्ध ( मंत ) गारुडादिकमंत्र उससे ( गुरुआ ) प्रभावशाली होनेसे ( दूर) अत्यन्त दूर और ( परिच्छूढ ) चारोंओर टालदिया है (विसम) मृत्युप्रद ( विसवेगा ) विषका वेग जिन्होंने ऐसे होकर ( विलसंत ) चमकीला है ( भोग) शरीर जिसका
और ( भीसण ) भयंकर (फुरिअ) चपल और (अरुण) लालहैं ( नयन ) नेत्र जिसके और ( तरल) चंचल, (जीहालं ) जीभ जिसकी ( नवजलय ) नए मेघके ( सच्छहं ) समान ( भीसण ) भयंकरहै ( आयारं ) आकार अथवा आचार जिसका ऐसे ( उग्ग ) विक्राल