SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नमिऊणस्तोत्रम् ॥ (खणेण ) क्षणभरमेही (इच्छिअं) आभिलषित ( कूलं ) तीरको ( पावन्ति ) प्राप्तहोतेहैं ॥ ४-५॥ (भावार्थ) अब गाथा द्वयसे भगवानका जलभयनाशकत्वरूपसे ___दूसरा माहात्म्य कीर्तन करते हैं । जो मनुष्य पार्श्वप्रभुके चरणयुगलको नित्य नमस्कार करतेहैं वेही प्रतिकूल वायुसे क्षुभित समुद्रकी मोटी लहरियोंसे भयंकर है शब्दजिसमें और वर्तमान संकट के निवारणमें घबराएहए और भयसे विव्हल मल्लाहओं ने छोडदियाहै नौकाचालनादिव्यापार जिसमें ऐसे समुद्रमें भी सुरक्षित नोकावान् होकर जलदी ही इच्छित तटको पहुंच जाते हैं ॥ ४५ ॥ अथ गाथायुगलेन पार्श्वप्रभोः तृतीय दवानलभयाप हारातिशयो वर्ण्यते। ॥ गाथा ॥ खरपवणुद्धअवणदव जालावालिमिलियसयल दुमगहणे । उज्झंतमुद्धमयबहु भौसणखभीसणं मिवणे ॥६॥ जगगरुणोकमजुअलं निव्वाविअसयलतिहु
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy