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________________ नमिऊणस्तोत्रम् ॥ भयंकरः आरावः शब्दः यस्मिन संभ्रांताः प्राप्तसंकटनिवारणे संमूढंचेतसः भयात् भीत्याः विसंष्टुलाः विव्हलाः एतादृशाः निर्यामकाः नाविकाः तैः मुक्तः परित्यक्तः व्यापारः व्यवसायः यस्मिन् एतादृशे महाजलाशये अविदलितानि अभग्नानि यानपात्राणि पोताः येषां क्षणेन निमेषमात्रेण इच्छितं अभिलाषितं .कूलं तीरं प्राप्नुवन्ति ॥ ४-५ ॥ (पदार्थ) (जे ) जो (नरा) मनुष्य (पासजिण) जिनभगवान पार्श्वप्रभुके ( चलणजुअलं ) चरणयुगलको (निञ्च ) निरंतर ( नमंति ) नमनकरतेहैं (चिअ ) अवधारणार्थे. (ते ) वेही ( दुव्बाय ) प्रलिकूल पवनसे (खुभिय) क्षोभित ( जलनिहि ) समुद्रकी ( उप्भड ) भारी ( कल्लोल ) लहरियोंसे ( भीसण ) भयंकरहै (आरावे) शब्द जिसमें तथा ( संभंत ) घबराए हुए और (भयविसंतुल ) भयसे विव्हल ऐसे (निझामय ) मल्लाह लोगोंने ( मुक्क ) छोडदिया है (वावारे) नावचलानेका व्यापार जिसमें ऐसे जलाशयमें भी ( अविदलिअ ) सुरक्षित, ( जाणवत्ता ) नौका जिन्होंकी ऐसे होकर
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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