SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नमिऊणस्तोत्रम् ॥ कुरूपतांनीताः नासाः घाणेन्द्रियाणि येषां विनष्टं भ्रष्टं लावण्यं सौंदर्य येषां कुष्टरूपः महारोगः (कुष्टोरोगविशेषः) सवअनलः अग्निः तस्य स्फुलिंगाः अग्निकणाः तैर्निर्दग्धानि प्लुष्टानि सागानि अखिलेन्द्रियाणि येषां ते तव भवतः चरणयोः पादयोः आराधनं पूजनं तदेव तत्संबंधिवासलिलं तेनकृतःसेकः पूजनावशिष्टजलसेचनं इत्यर्थः तेनवर्दिताः एधिताः छायाः कान्तयो येषां एतादृशाः सन्तः वनदवेन आरण्यदावानलेन दग्धाः प्लुष्टाः गिरिपादपाः पर्वतीयवृक्षा इव लक्ष्मी आरोग्यसंपत्ति प्राप्ताः भवन्ति ॥ २-३ ॥ (पदार्थ) ( साडय) सडगए हैं (कर ) हाथ ( चरण ) पाव ( नह ) नख ( मुह ) मुख जिन्होंके, (निबुड्ड ) बैठगई है ( नासा ) नासिका जिन्होंकी, (विवन्न ) नष्टहोगया है ( लावन्ना ) लावण्य जिन्होंका, ( कुट्ठ) कोढ़रूप (महारोग) भारी व्याधि यही मानो (अनल) अग्नि उसकी ( फुलिंग ) चिनगारियोंसे ( निवडूढ ) जलगया है ( सव्वंगा ) सम्पूर्ण अंग जिन्होंका (ते ) वे ( तुह ) आपके ( चलण ) चरणोंकी ( आराहण )
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy