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नमिऊणस्तोत्रम् ॥
रंजितं शोभितं महाभययप्रणाशनं रोगजलज्वलनादि षोडशभयेषुयानि अष्टमहाभयानितेषां प्रणाशकर्तृ एतादृशं चरणयुगलं नमस्कृत्य संस्तवं वच्मि वर्णयामि ॥ १॥
( पदार्थ) ( मुणिणो ) पार्श्वप्रभुके ( पणय ) नमस्कारकरने वाले ( सुरगण ) देवताओंके समूहके ( चूडा ) मुकुटों में स्थित ( मणि ) मणियोंकी (किरण ) किरणोंसे ( रंजिअं) सुशोभित और ( महाभय ) आठ महाभयों के ( पपासणं ) नाशकरनेवाले ऐसे (चलणजुअलं) चरणयुगलको ( नमिऊण) प्रणामकर (संथ) स्तवन को ( वुच्छं) वर्णन करताहूं ॥ १॥
(भावार्थ) संस्तवके आरंभमें मंगल कीर्तन पूर्वक
मंगलगाथा कहते हैं। प्रणामकरनेवाले देवोंके मुकुटमणियोंकी किरणोंसे सुशोभित और आठ महाभयोंके नाशकरनेवाले ऐसे पार्श्वप्रभुके चरणयुगलको प्रणामकर मैं स्तवनको वर्णन करताहूं ॥१॥