________________
46
मुनिवर्यना सदुपदेशथी मैसुर - नरेशे मैसुर शहरमां बंध करावेलो गौवध. २३ राज- दरबारमां भटकता साधु-संन्यासी अने फकिरो क्या ? अने आ निःस्पृही निरभिमानी अने सरल हृदयना जैन मुनिवर्यो क्यां ? " पोताने देशनानी अमूल्य भेट आपी आ महात्माने खाली हाथे जता जोइ नृपति मुंझाया, दीर्घ विचार करी बोल्या के, 'महात्मन् ! शुं आप मारी कांड पण चीज नहिं स्वीकारो ?' समयना जाण मुनिराजे कां के, “ नरेन्द्र ! आपनी मने कांइक भेट धरवानी इच्छा छे, तो मारी एकज मागणी छे के, आप जेवा संस्कारी, दयाळु अने भाविक आर्य महाराजाना राज्यमां गौवध बंध थवो जोइए " मैसुर नरेशे सरलताथी उत्तर आप्यो के, “ आपे तस्दी लई अत्रे पधारी आपना अमूल्य समयनो भोग आपी मने अमोघ उपदेशामृतनुं पान कराव्यं, ते बदल आपनो ओशींगण छं. मारा राज्यमां गौवध अटकाववानी आपे जे सूचना करी, ए हिंदुधर्मी तरीकेनी मारी पोतानी फरज छे, अने ए सूचना आपी मने जागृत कर्यो ते बदल आभार मानुं छं. हवेथी हुं मारा आंखा राज्यमां गौवध बंध कराववा माराथी बनतुं जरुर करीश. " पाछळथी मुनिवर्ये पत्र-व्यवहार शरु कर्यो, . तेनुं शुभ परिणाम ए आव्युं के, मैसुर शहेरमां जे पहेलां गौवध थतो हतो ते तद्दन बंध कर्यो अने मैसुर नरेशे जणान्युं के, “ हालमां तो मैसुर शहेरमां गौवध बंध करवामां आव्यो छे. जो के हिंदुधर्मी तरीके आखा राज्यमां गौवध अटकाववा मारी उत्कट इच्छा छतां राज्यमां वसती
44