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२२ मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजनुं जीवन चरित्र. जनो योग्य आदर-सत्कार करी विनय-पूर्वक उपदेश श्रवण करवा बेठा. मुनिराजे जैन सिद्धांतनी शैलि मुजब हिंसा त्यागवानो, दया राखवानो, नीतिपूर्वक राज्य चलाववानो, अने रामचन्द्र तथा युधिष्ठिर विगेरे अगाउना नरपति माफक प्रजा उपर पोताना संतान पेठे वात्सल्यभाव राखवानो उपदेश संभळाव्यो. मुनिराजना उपदेशनी मैसुर-नरेशना अंत:करणमां उंडी छाप पडी, अने वैष्णव संप्रदायना अनेक साधु-संन्यासीना मुखथी जे तत्त्वो नहोता समजाया ते आ ज्ञानी मुनिराजना मुखथी समजाया. नरेशनी केटलीक शंकाओनां समाधान मुनिराजे घणी ज सारी रीते करी आप्यां, तेथी मैसुर-महाराजाए फरी वखत उपदेश सांभळवानी तत्परता बतावी. आवी रीते अवार-नवार पांच वखत मुलाकात थइ. मैसुर महाराजाने आवा ज्ञानी महात्मानो सत्कार करवा अभिलाषा थइ, अने एक किंमती दुशालो ( कामळ ) मंगावी भेट धों. महात्माश्रीए कह्यु के, “ महाराजा ! आपनी भावना अनुमोदना करवा योग्य छे, आवेला साधुसंतनो सत्कार करवो ए खरा राजवीनुं भूषण छ; परंतु जैन तीर्थकरोनी आज्ञामां विचरता मुनिओने राजपिंड न कल्पे." आ प्रमाणे कही मुनिवर्य जैन-साधुओनो आचार समजाव्यो. आवी निःस्पृहता जोई मैसुर-नरेश आश्चर्यमां गरकाव थई गया. तेओ विचारवा लाग्या के-" आदरसत्कार, आजीविका अने किंमती उपहारो माटे पोताना