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________________ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmm आकोला विगेरे शहेरोमां चतुर्मास, आगमादिनुं अध्ययन. १९ विचरता मुनिराज श्री भावविजयजी आकोला आव्या. अने संवत् १९८४ नी सालमां आकोला चतुर्मास कयु. पोते संसारी अवस्थामा ज संस्कृत व्याकरण अने काव्योनो सारो अभ्यास करी पंडित बन्या हता, वळी धार्मिक अभ्यास पण ठीक को हतो, तेथी तेमने साधु-अवस्थामा संस्कृत व्याकरण विगेरे करवापणुं नहोतुं. परंतु पोते आगमो देख्यां नहोता, तेथी आचार्यजी महाराजने विनंति करी के, “गुरुदेव ! जो आप मारामां योग्यता देखता हो, अने आपनी आज्ञा होय तो आगमोनो अभ्यास करवानी मारी पूर्ण अभिलाषा छे. ए महेच्छा आपनी कृपादृष्टि होय अने आज्ञा आपो तोज पार पडे." आचार्यजी महाराजे मुनि भावविजयजीमां आगम जेवो गहन विषय समजवानी योग्यता अने ए ज्ञानने पचाववानी पूर्ण ताकात जोइ घणीज खुशीथी अनुमति आपी. अने गुरुदेवनी आज्ञाथी न्यायविशारद, न्यायतीर्थ, उपाध्यायजी महाराज श्री मंगळविजयजी महाराज पासे दशवकालिक सूत्र तथा उत्तराध्ययन सूत्रनुं अवलोकन कर्यु. पठन-पाठनशील विद्याप्रेमी उपाध्यायजी महाराजे घणाज प्रेमथी सूत्रोमां आवतां गूढ तत्वो बहुज सरलताथी समजाव्या. चतुर्मास पूर्ण थतां आचार्यजी महाराज विगेरे साथे आकोलाथी विहार कॉ. रस्तामां आवतां शहेरो अने गामडाओमां अनेक शुभ कार्यो थतां हतां, आवी रीते विहार करता करता मद्रास आव्या, अने संवत् १९८५ नी सालमां
SR No.002455
Book TitleSubhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavvijay
PublisherBhupatrai Jadavji Shah
Publication Year1935
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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