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मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजनुं जीवन चरित्र.
कुटुंबी जनोनी राजी-खुशीथी संमति मळी चूकी. मोरबाडमां आ महान् शुभकार्य निमित्ते श्री संघ तरफथी अट्ठाइ महोत्सव शरु थयो. श्रद्धालु श्रीमंत श्रावकोए आ भावसाधुनी विविध प्रकारे भक्ति अने सन्मान करवामां मणा न राखी. संवत् १९८४ ना महा वदि आठमना रोज दबदबाभर्यो वरघोडो नीकळ्यो, अने पंडितजी जादवजी भाईए श्रीसंघ तथा कुटुंबी जनोनी हाजरीमां हजारो माणसोनी मेदनी वच्चे मोरबाडमां आसोपालवना वृक्ष नीचे आचार्यजी महाराज श्री विजयेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज पासे दीक्षा लीधी. तेमनी शुभ भावना वृद्धि पामती जोई आचार्यजी महाराजे तेमनुं 'मुनि भावविजयजी' ए प्रमाणे शुभ नाम आप्यु. मुनिराज श्री भावविजयजीए गुरुदेवनी संमतिथी तुरत वडी दीक्षाना जोग शरु करी दीधा, अने संवत् १९८४ ना फागण शुदि पांचमना रोज गुरुदेव श्री विजयेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज पासे मोरबाडमां वडी दीक्षा लीधी. गुरुदेव श्री विजयेन्द्र सूरीश्वरजी साथे आकोला, मद्रास अने बेंगलोरमां करेलां चतुर्मास,आगमो
विगेरेनुं करेलु अध्ययन. मोरबाडथी आचार्यजी महाराज, उपाध्यायजी श्री मंगलविजयजी महाराज तथा साधु-मंडळ साथे ग्रामानुग्राम