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(७०) श्री सप्त स्मरणादि नित्यस्मरण. चिद्विउ किट्ठ देव दीणयमवलंबिउ । कासु न किय निष्फल्ल लल्लि अम्हेहिं दुहत्तिहि, तहवि न पत्तउ ताणु किंपि पइ पहुपरिचत्तिहि ॥१६॥ तुहु सामिउ तुहु माय-वप्पु तुहु मित्त पियंकरु, तुहुँ गइ तुहु मह तुहु जि ताणु तुहु गुरु खेमंकरु । हउँ दुहभरभारिउ वराउ राउ निब्भग्गह, लोणउ तुह कमकमलसरणु जिण पालहि चंगह ॥ २० ॥ पइ किवि कय नीरोय लोय किवि पावियसुहसय, किवि मइमंत महंत केवि किवि साहियसिवपय । किवि गंजियरिउवग्ग केवि जसधवलियभूयल, मइ अवहीरहि केण पास सरणागयवच्छल १॥ २१ ॥ पच्चुवयारनिरीह नाह निप्पन्नपोयण, तुह जिण पास परोवयारकरणिकपरायण । सत्तुमित्तसमचित्तवित्ति नयनिंदयसममण, मा अबहीरि अजुग्गो वि मइ पास निरंजण ॥ २२ ॥ हउँ बहुविहदुहतत्तगत्त तुह दुहनासणपरु, हउँ सुयणह करुणिकठाण तुह निरु करुणायरु । हउँ जिण पास असामिसालु तुहु तिहुअणसामित्र, जं अवहीरहि मइ झखंत इय पास न सोहिय ॥ २३ ।। जुग्गाजुग्गविभाग नाह नहु जोअहि तुह सम, भुवणुवयारसहावभाव करुणारससत्तम । समविसमई किं घणु नियइ भुवि दाह समंतउ, इस दुहिबंधव पासनाह मइ पाल थुणंतउ ॥ २४ ॥ न य दीणह दीणयु मुयवि अन्नुवि किवि जुग्गय, जं जोइवि उवयारू करहि उवयारसमुन्जय । दीणह दीणु निहीणु जेण तइ नाहिण चत्तउ, तो जुग्गउ अहमेव पास पालहि मह चंगउ ॥ २५ ॥ अह अन्नुवि जुग्गयविसेसु किवि मन्नहि दीणह,