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श्री जय तिहुअण स्तोत्रम् | ( ६९ ) तुह कल्ला महेसु घंटटंकारवपिलि, वल्लिरमल्ल महल्लभत्ति सुरवर गंजुलि । हन्लुप्फलिअ पवत्तयंति भवणे वि महूसव, इय तिहुणभाणंदचंद जय पास सुहुन्भव ॥ १२ ॥ निम्मल केवल किरण नियर विहुरियतमपहयर, दंसि असयल पयत्थसत्थ वित्थरि पहाभर । कलिकलुसियजण धूलोयलोह गोयर, तिमिरइ निरु हर पासनाह भुवणत्तयदियर ||१३|| तुह समरणजलवरिससित्त माणवमइमेइणि, अवरावर सुहुमत्थवोह कंदलदलरेहणि । जायइ फलभरभारिय हरियदुदाह प्रणवम, इय महमेहणिवारिवाह दिस पास मई मम ॥ १४ ॥ कय अविकलकल्लाणवल्लि उल्लूरिय दुहवणु, दाविय सग्गपवग्गमग्ग दुग्गहगमवारणु । जयजंतुह जणएग तुल्ल जं जणिय हियावहु, रम्मु धम्मु सो जयउ पास जयजंतुपियामहु ।। १५ ।। भुवणारण्णनिवास दरिय परदरिसंणदेवय, जोइणि- पूयण - खित्तवाल खुद्दासुरपसुवय । तुह उत्तट्ठ सुनट्ठ सुट्टु अविसंटुलु चिट्ठहि, इय तिहुप्रणवणसीह पास पावाइ पणासहि ।। १६ ।। फणिफणफारफुरंत - रयणकररंजियनहयल. फलिणीकंदलदल - तमालनीलुप्पलसामल । कमठासुरउवसग्ग वग्ग संसग्गागंजिअ, जय पच्चक्खजिणेस पास थंभणयपुरट्टि | १७ || मह मणु तरलु पमा नेय वायावि विसंठुलु, नय तणुरवि प्रविणय सहावु आलसविहलं खलु । तुह माहप्पु पमाणु देव कारुण्ण पवित्त, इस मह मा अवहरि पास पालिहि विलवंतउ ।। १८ ।। किं किं कप्पिउ न य कलुणु किं किं व न जंपिउ, किं व न