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(६८)
श्री सप्त स्मरणादि नित्यस्मरण.
होइ पवित्तउ, तं तिहुअणकल्लाणकोस तुह पास निरुत्तर ॥ ४ ॥ खुद्दपउत्तइ मंत-तंत-जंताइ विसुत्तइ, चरथिरगरलगहुग्गखग्गरिउवग्ग विगंजइ । दुत्थियसत्थ अणत्थपत्थ नित्थारइ दय करि, दुरियइ हरउ स पासदेउ दुरियकरिकेसरि ॥५।। तुह आणा थंभेइ भीमदप्पुरद्धरसुरवर,-रक्खस -जक्ख-फणिंदविंद-चोरा-नल-जलहर । जलथलचारि रउद्दखुद्दपसुजोइणिजोइअ, इय तिहुअण अविलंधिप्राण जय पास सुसामिय ॥ ६ ॥ पत्थियअत्थ अणत्थतत्थ भत्तिब्भरनिन्भर, रोमंचंचित्र चारुकाय किन्नरनरसुरवर । जसु सेवहि कमकमलजुअल पक्खालिसकलिमलु, सो भुवणत्तयसामि पास मह मद्दउ रिउबलु ।। ७॥ जय जोइअमणकमलभसल भयपंजरकुंजर, तिहुअणजणाणंदचंद भुवणत्तयदिणयर । जय महमेइणिवारिवाह जय जंतुपियामह, थंभणयट्टिा पासनाह नाहत्तण कुण मह ।।८।। बहुविहवण्णु अवण्णु सुन्नु वण्णिउ छप्पन्निहि, मुक्खधम्मकामस्थकाम नर नियनियसस्थिहिं । जे झायहि बहुदरिसणस्थ बहुनामपसिद्धउ, सो जोइअमणकमलभसल सुहु पास पवद्धउ ।। ६ ॥ भयविन्भल रणझणिरदसण थरहरिप्रसरीरय, तरलिअनयण विसण्ण सुन्न गग्गरगिर करुणय । तइ सहसत्ति सरंत हुंति नर नासिअगुरुदर, मह विज्झवि सज्झसइ पास भयपंजरकुंजर ॥ १० ॥ पई पासि विअसंतनित्तपत्तंतपवित्तिय,-वाहपवाहपवूढरूढदुहृदाह सुपुलइय । मन्नइ मन्नु सउन्नु पुन्नु अप्पाणं सुरनर, इय तिहुअणआणंदचंद जय पास जिणेसर ॥११॥