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गयमाहा गयषणसान।।११।।
श्री तिजयपहुत्त अने जय तिहुमण. (६७)
.xxxxrammarrrrrrrrrrrrrrrrrr ॥९॥ चउतीसअइसयजुआ, अट्ठमहापाडिहेरक्यसोहा । तित्थयरा गयमोहा, झाएअव्वा पयत्तेणं ॥ १० ॥ ॐ वरकणयसंखविदुम, मरगयषणसंनिहं विगयमोहं । सत्चरिसयं जिणाणं, सव्वामरपूइअं वंदे । स्वाहा ॥ ११॥ ॐ भवणवइवाणवंतर,-जोइसवासी विमाणवासी । जे केवि दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु ममं । स्वाहा ॥ १२ ॥ चंदणकप्तरेणं, फलए लिहिऊण खालिअं पीअं । एगंतराइगहभूत्र,-साइणिमुग्गं पणासेइ ॥ १३ ॥ इय सत्तरिसयजंतं, सम्मं मंतं. दुवारि पडिलिहिअं । दुरिमारिविजयवंतं, निभंतं निचमच्चेह ॥१४॥
श्री जय तिहुअण स्तोत्रम् । . जय तिहुअण वरकप्परुक्ख जय जिणधनंतरि, जय तिहुअणकलाणकोस दुरिअकरिकेसरि । तिहुअणजणअविलंधियाण भुवणत्तयसामिप्र, कुणसु सुहाइ जिणेस पास थंभणयपुरद्विअ ॥१॥ तइ समरंत लहंति झत्ति वरंपुत्तकलत्तइ, धण्णसुवण्णहिरण्णपुण्ण जण मुंजइ रजह । पिक्खइ मुक्खअसंखसुक्ख तुह पास पसाइण, इय तिहुअणवरकप्परुक्ख सुक्खइ कुण मह जिण ॥२॥ जरजजर परिजुण्णकण्ण नहट्ट सुकुट्टिण, चक्खुक्खीण खएण खुण्ण नर सनिम सलिण । तुह जिण सरणरसायणेण लहु हुँति पुणण्णव, जयधन्वंतरि पास मह वि तुह रोगहरो भव ॥ ३॥ विजाजोइसमंतप्तसिद्धिउ अपयत्तिण, भुवणन्भुउ अट्ठविह सिद्धि सिजहि तुह नामिण । तुह नामिण अपवित्तमो वि जण