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श्री सप्त स्मरणादि नित्यस्मरण.
वाडए पयर्ड ।। मुकाविआरिऊणं, सीहेण व दवलिंगिय गया ॥ १० ।। दसमच्छेरयनिसिविप्फुरंत सच्छंद सूरिमय तिमिरं ॥ सूरेण व मूरि जिणे,-सरेण हयमहिम दोसेण ॥११॥ सुक्कइत्त पत्त कित्ती, पयडि गुत्ती पसंत सुहमुत्ती ॥ पहय परवाइ दित्ती, जिणचंद जईसरो मंती ॥ १२ ॥ पयडिन नवंग सुत्तत्थ, रयणुक्कोसो पणासि पओसो ॥ भवभीय भवित्र जणमण, कयसंतो सो विगय दोसो ॥१३॥ जुग पवरागम सार, परूवणा करणबंधुरो धणिअं । सिरि अभयदेव सूरी, मुणिपवरो परम पसमधरो ॥ १४ ॥ कय सावय संतासो, हरिव्य सारंग भग्ग संदेहो ।। गय समय दप्प दलणो, आसाइअ पवरं कबरसो ॥ १५ ॥ भीम भव काणणंमि अ, दंसिप गुरुवयण रयण संदेहो ॥ नीसेस सत्त गुरुओ, सूरी जिणवल्लहो जयह ॥१६॥ उवरिटिअ सच्चरणो, चउरणुप्रोगप्पहाण सचरणो ॥ असम मयराय महणो, उनुमुहो सहइ जस्स करो ॥ १७ ॥ दंसिप निम्मल निचल, दंतगणो गणिय सावोत्थ भो ॥ गुरुगिरि गरुओ सरहुव्व, सूरि जिणवल्लहो होत्था ॥ १८ ॥ जुग पवरागम पीऊस-पाण पीणिय मणाकया भव्या ।। जेण जिणवल्लहेणं, गुरुणा तं सव्वहा वंदे ॥ १६ ॥ विप्फुरिय पवर पवयण, सिरोमणी बूढ दुबह खमोय ॥ जो सेसाणं से सुब्ब, सहइ सत्ताण ताणकरो ॥ २० ॥ सच्चरिमाण महीणं, सुगुरूणं पारतंत मुव्वहइ ।। जयइ जिणदत्त सूरी, सिरि निलयो पणय मुणितिलो ।। २१ ।।