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श्री गुरुपारतंत्र्यनामकं पंचमं स्मरणम् । (१३) दुस्सझं तस्स नत्थि किंपि जए ॥ जिणदत्ताणाए ठिो, संनिहिअठो सुही होई ॥ २६ ॥
श्री गुरुपारतंत्र्यनामकं पंचमं स्मरणम् । मयरहियं गुणगण रयण, सायरं सायरं पणमिऊणं ॥ सुगुरुजण पारतंतं, उवहिव्व थुणामि तं चेव ॥ १ ॥ निम्महिय मोह जोहा, निह य विरोहा पण संदेहा ॥ पणयंगि वग्ग दावि, सुह संदोहा सुगुण गेहा ॥ २ ॥ पत्तसुजइत्त सोहा, समत्त परतित्थ जणि संखोहा । पडिभग्ग मोह जोहा, दंसिप सुमहत्थ सत्थोहा ॥३॥ परिहरि सत्थवाहा, हय दुहदाहा सिवंबतरुसाहा ॥ संपाविप सुहलाहा, खीरोदहिणुव्व अग्गाहा ॥ ४ ॥ सुगुणजण जणिय पुजा, सजोनिरुवज गहिअ पयजा । सिवसुह साहण सजा, भवगिरि गुरु चूरणे वजा ॥ ५॥ अजसुहम्मप्पमुहा, गुणगण निवहा सुरिंद विहिन महा ! ताण तिसंझं नाम, नामं न पणासइ जियाणं ॥ ६ ॥ पडिवजिय जिण देवो, देवायरित्रो दुरंत भवहारी ॥ सिरि नेमचंद सूरी, उज्जोमण सूरिणो मुगुरु ॥ सिरि वद्धमाण सूरी, पयडीकथ सूरि मंत माहप्पो ॥ पडिहय कसाय पसरो, सरयससंकुव्व सुह जणो ॥८॥ सुहसील चोर चप्परण, पञ्चलो निचलो जिणमयंमि । जुगपवर सुद्धसिद्धत, जाणो पणय सुगुण जणो ॥ ६ ॥ पुरओ दुल्लहमहिवल्लहस्स, अणहिल