________________
(१२)
श्री सप्त स्मरणा दि नित्यस्मरण.
कय रक्खा, जक्खा चउवीस झासणसुरा वि | सुहभावा संतावं, तित्थस्स सया पणासंतु ॥ १४ ॥ जिणपवयणम्मि निरया, विरया कुपहाउ सयहा सव्वे । वेशावच्च करावित्र, तित्थस्स हवंतु संतिकरा ॥ १५ ॥ जिणसमय सुद्धसमग्ग, विहिय भन्बाण जयणि साहजो॥ गीयरई गीअजसो, सपरि. वारो सिवं दिसउ ॥ १६ ॥ गिहगुत्त खित्त जल थल, वण पव्वयवासि देव देवीओ ॥ जिण सासणठिाणे, दुहाणि सव्वाणि निहणंतु ॥ १७ ॥ दस दिसिवाला सक्खित्तवालया नवग्गहा सनक्खत्ता ॥ जोइणि राहुग्गह काल-पास कुलिअद्ध पहरेहि ॥ १८ ॥ सहकाल कंटएहिं, सविष्ठिवत्थेहिं कालवेलाहिं । सव्वे सव्वत्थ सुह, दिसंतु सव्वस्त संघस्स ॥१६ ।। भवणवइ वागामंतर, जोइस वेमाणिआ य जे देवा ।। धरणिंद सक सहिमा, दलंतु दुरिआई तित्थस्स ।। २० ॥ चकं जस्स जलंतं, गच्छइ पुरो पणासियतमोहं ।। तं तित्थस्स भगवओ, नमो नमो वद्धमाणस्स ।। २१ ॥ सो जयउ जिणो वीरो, जस्सजवि सासणं जए जयइ । सिद्धिपह सासणं कुपह, नासणं सव्वभय महणं ।। २२ ॥ सिरि उसभसेण पमुहा, हयभय निवहा दिसंतु तित्थस्स ।। सन्न जिणाणं गणिहारिणो णहं वंछियं सव्वं ॥ २३ ॥ सिरि वद्धमाण तित्थाहिवेण तित्थं समप्पियं जस्स ॥ सम्मं सुहम्म सामी, दिसउ सुहं सयल संघस्स ।। २४ ।। पयइए भदिया जे, भद्दाणि दिसंतु सयलसंघस्स ।। इयरसुरा विहु सम्म, जिणगणहर कहिय कारिस्स ॥ २५ ॥ इय जो पढइ तिसंझ,