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सिग्धमवहरउ नामकं षष्ठं स्मरणम् ।
सिग्धमवहरउ नामकं षष्ठं स्मरणम् ।
सिranars विग्धं, जिणवीराणाणुगामि संघस्स । सिरि पास जिणो थंभण, पुरट्टिभो निट्ठिआनिट्ठो ॥ १ ॥ गोयम सुहम्म पमुद्दा, गणवइणो विहित्र भव्य सत्तसुहा ॥ सिरि वद्धमाण जिण तित्थ, सुत्थयं ते कुणंतु सया ॥ २ ॥ सकाइयो सुराजे, जिण वेयावच्च कारिणो संति || अवहरिय विघ संघा, हवंतु ते संघ संतिकरा | ३ || सिरि थंभणय हिय पास, सामि पयपउम पणय पाणीणं ॥ निद्दलिय दुरिय विंदो, धरणिदो हरउ दुरियाई || ४ || गोमुह पमुक्ख जक्खा, पडिय पडिवक्ख पक्ख लक्खा ते ॥ कयसगुण संघ रक्खा, हवंतु संपत्त सिव सुक्खा ॥ ५ ॥ अप्पडिचक्का पमुहा, जिंणसास देवयावि जिणपणया || सिद्धाइमा समेया, हवंतु संघस्स विग्घहरा || ६ || सक्काएसा सच्चउर, - पुरडिओ वद्धमाण जिणभत्तो । सिरि बंभसंति जक्खो, रक्खउ संघ पयत्तेण ॥ ७ ॥ खित्तगिह गुत्त संताण, देस देवाहिदेवया ताओ || निव्वुद पुर पहिचाणं भव्वाण कुणंतु सुक्खाणि ॥ ८ ॥ चक्केसरि चक्कधरा, विहिपहरिउछिन्न कंधरा धणियं ॥ सिवसरण लग्ग संघस्स, सव्वहा हरउ विश्वाणि ॥ ६ ॥ तित्थवइ वद्धमाणो, जिसरो संग सुसंघेण । जिणचंदो भयदेवो, रक्खउ जिणवल्लहो पहुमं ।। १० । सो जयउ वद्धमाणो, जिणेसरो सरुव्व हयतिमिरो || जिण चंदा भयदेवा, पहुणो जिणवल्लहा जे अ ।। ११ ।। गुरु जिणवल्लह
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