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भक्तामर-कथा ।
ऐसा प्रमत्त गज होकर क्रुद्ध आवे; पावें न किन्तु भय आश्रित लोक तेरे ॥
नाथ ! आपके आश्रित जन उस उद्धत हाथीको सामने आता हुआ देख कर जरा भी भयभीत नहीं होते जिसका कि क्रोध, मद झरते हुए कपोलों पर मत्त भौरोंकें गूँजते रहनेके कारण अत्यंत ही बढ़ रहा है । अर्थात् आपके आश्रित जन भयंक संकटके समय में भी निर्भय ही रहते हैं !
सोमराजकी कथा |
उक्त पद्य मंत्री जो आराधना करते हैं, उन्हें फिर हाथी सरीखे भयंकर प्राणियोंसे भी कुछ भय नहीं रहता । इसकी कथा नीचे लिखी जाती है |
पटना में सोमराज नामका एक राजपुत्र रहता था । पापके प्रबल उदयसे न तो उसके वंशमें कोई जीता बचा था और न राजसम्पत्ति ही बची थी । वह दरिद्री होकर बहुत दुःख पा रहा था ।
एक दिन उसे वर्द्धमान मुनिके दर्शन हुए । मुनिने उसे विधिपूर्वक भक्तामर और उसके मंत्रोंकी आराधना सिखला दी । वह बहुत श्रद्धा भक्ति के साथ भक्तामरकी साधना करने लगा ।
एक दिन उसने सोचा, मुझे ऐसी स्थितिमें यहाँ रहना उचित नहीं । कारण, भाई-बन्धु मुझे निरुद्यमी देख कर जला करते हैं और ताना मारा करते हैं। इस दुःखसे मर-मिटना कहीं अच्छा, पर ऐसे लोगों के यहाँ रहना अच्छा नहीं । इस विचार के साथ ही वह विदेशके लिए रवाना हो गया ।
घूमता फिरता वह हस्तिनापुर पहुँचा । संयोग वश वहाँके राजाका पट्टहाथी साँकल तुड़ा कर भाग छूटा था; और उन्मत्त होकर लोगों को मारता हुआ उनके घरोंको गिराता फिरता था । उसके भय से सारा नगर त्रस्त हो उठा । राजाने उसके पकड़वानेका बहुत प्रयत्न किया;;