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________________ . जिनदासकी कथा। ___ एक दिन जिनदास कहीं बाहर गया हुआ था। रास्तेमें उसे चोर मिल गए । रत्नके प्रभावसे उसने उन्हें बाँध लाकर राजाके सुपुर्द कर दिया। यह देख राजा बहुत प्रसन्न हुआ। सच है, मणि-मंत्र औषधिका कितना प्रभाव है इसे कोई नहीं बतला सकता। यह देख राजाका जिनदास पर इतना प्रेम हो गया कि उसने उसे अपना मंत्री बना लिया और उसका हाल जान कर स्वयं भी जैनी बन गया। बड़ोंकी संगतिसे किसे धर्मकी प्राप्ति नहीं होती। अब जिनदासकी दशा बहुत सुधर गई। उसे धन भी मिल गया और राजसम्मान भी उसका खूब हुआ। अबसे वह सारे नगरका एक प्रधान प्रतिनिधि गिना जाने लगा। इसके बाद उसने कई विशाल जिनमन्दिर बनवाए, उनकी बड़े ठाट-बाटसे प्रतिष्ठा करवाई, दीन-दुखियोंकी सहायता की, उन्हें दान दिया, और खूब उत्सव किया। देखो, जो पहले एक महा दरिद्र था, वही धर्म और जिनभक्तिके प्रभावसे कितना उन्नत हो गया। इसलिए भव्य पुरुषोंको सदा धर्म-पालन और जिन भगवानकी भक्ति करना उचित है। क्योंकि जो भक्ति संसारके दुखोंका नाश करती है। उसके द्वारा साधारण राज्य-विभूतिका मिलना तो कुछ कठिन ही नहीं है । श्योतन्मदाविलविलोलकपोलमूल__ मत्तभ्रमभ्रमरनादविवृद्धकोपम् । ऐरावताभमिभमुद्धतमापतन्तं दृष्ट्वा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम् ॥३८॥ - हिन्दी-पद्यानुवाद । दोनों कपोल झरते मदसे सने हैं, गुंजार खूब करती मधुपावली है।
SR No.002454
Book TitleBhaktamar Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherJain Sahitya Prasarak karyalay
Publication Year1930
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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