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सोमराजकी कथा। anm mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
पर लाभ कुछ नहीं हुआ । जब बड़े बड़े शूरवीर उसे न पकड़ सके. -उससे हार मान गये-तब राजाने नगरमें मनादी पिटबाई कि " जो वीर इस उन्मत्त हाथीको वश करेगा उसे मैं अपने राज्यका चतुर्थाश. देनेके साथ साथ अपनी गुणवती नामकी कन्या भी विवाह दूंगा ।"
इसी समय सोमराज इधर ही होकर जा रहा था । मनादी सुन कर उसने निश्चय किया कि जो हो एक बार इस हाथीको मैं अवश्य वश करूँगा । इसके बाद वह " श्योतन्मदाविलविलो. लकपोलमूल-" आदि श्लोकके मंत्रकी आराधना कर उस हाथीको पकड़ने चला। हाथीके पास पहुँच कर उसने बातकी बातमें उसे पकड़ कर अपने वश कर लिया । उसके पराक्रमको देख कर सब लोग बड़े खुश हुए । इसके बाद उसने हाथीको राजाके सामने लाकर खड़ा कर दिया । राजा अपनी प्रनाकी रक्षा करनेवाले सोमराज पर प्रसन्न तो बहुत हुआ, पर उसके साथ बात-चीत करनेसे राजाको जान पड़ा कि वह विदेशी है । तब उसे बड़ी चिन्ता हो गई। राजाने सोचा कि इस विदेशीको, जिसके कि कुलस्वभावका कुछ ठिकाना नहीं, अपनी पुत्री मैं कैसे देदूँ! यह तो उचित नहीं है । परन्तु एक बात है । वह यह कि धनसे स्त्री मिल सकती है, धनसे राज्य-सम्मान होता है
और धनहीसे सब आनन्द मिलता है; इसलिए इसे खूब धन देकर बिदा कर देना अच्छा है। ___राजा तो इधर यह विचार कर रहा था और उधर राजकुमारी गुणवती सोमराजको अपने महलके झरोखोंमेंसे देख कर उस पर मोहित हो गई । क्योंकि सोमराजकी सुन्दरता कामदेवसे भी बढ़कर थी। ऐसी हालतमें राजकुमारीका उस पर मोहित हो जाना कोई आश्चर्यकी