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भक्तामर कथा ।
हिन्दी - पद्यानुवाद | फूले हुए कनकके नव पद्मकेसे, शोभायमान नखकी किरणप्रभासेतूने जहाँ पग धरे अपने विभो ! हैं, नीके वहाँ विबुध पङ्कज कल्पते हैं ।।
हे जिनेन्द्र ! सोनेके खिले हुए नवीन कमलोंके समान कान्तिको धारण करनेवाले और चारों ओर फैली हुई नखोंकी किरणोंसे सुन्दर चरणों को आप जहाँ रखते हैं वहीं स्वर्गके देव उनके नीचे कमलोंकी रचना करते हैं ।
कामलताकी कथा ।
जिनकी गर्दन टेड़ी हो, जो कुबड़े हों, वे इस श्लोक के मंत्रकी आराधना करके सुन्दर हो सकते हैं । इसका फल जिसे प्राप्त हुआ उसकी कथा नीचे लिखी जाती है :
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पटना में धात्रीवाहन नामके राजा हो चुके हैं। वे बड़े नीतिज्ञ थे । प्रजा उन्हें बहुत चाहती थी । वे भी प्रजाका अपनी संतानकी भाँति पालन करते थे। उनकी रानीका नाम धात्रसेना था। उनके सात कन्याएँ थीं, - तब भी उनकी बड़ी इच्छा थी कि एक कन्या और हो जाय । जन प्रायः नई बातकी ही इच्छा करते हैं । महारानी की इच्छा थी कि इस पुत्रीका भी मैं बड़े ठाट-बाटसे विवाह करूँगी । उसके व्याहमें बड़े बड़े राजे महाराजे आवेंगे । उससे मेरे राज्यकी बहुत प्रशंसा होगी।
भाग्यसे अबकी बार भी उनके पुत्री हो गई। सबको बड़ी खुशी हुई। खूब आनंद उत्सव मनाया गया । गरीबों को दान दिया गया । मनचाही वस्तुके प्राप्त होनेपर किसे प्रसन्नता नहीं होती ।
राजकुमारी बड़ी सुन्दरी हुई। उसकी सुन्दरताको देख कर देवकुमारियाँ भी लज्जित होती थीं। जैसे जैसे उसकी उमर बढ़ती गई वैसे