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भीमसेनकी कथा।
मुनिने कुछ सोच कर कहा कि आपको तीन दिन तक सबेरे, दोपहर और सायंकाल यहाँ आना चाहिए । राजा मुनिकी आज्ञा स्वीकार कर और उन्हें नमस्कार कर अपने महल लौट आए। इसके बाद दूसरे दिनसे वे उनके पास तीनों समय जाने लगे। मुनिने 'शुभत्प्रभा' और ' स्वर्गापवर्ग' इन दो श्लोकोंकी आराधना की और उससे मंत्रा हुआ जल राजा पर छीटना शुरू किया। मंत्रके प्रभावसे राजाका शरीर पहलेकी भाँति सुन्दर हो गया। इससे उन्हें जो प्रसन्नता हुई उसका वर्णन करना असंभव है। इसके बाद उनने मुनिराजके कहे अनुसार जीवहिंसा छोड़ कर दयाधर्म स्वीकार किया और साथ ही श्रावकोंके व्रत धारण किये। .
इसके सिवाय उनने अपने देशभरमें यह मनादी पिटवा दी कि "मेरे राज्य-भरमें कोई जीवहिंसा न करने पावे | फिर वह चाहे किसी धर्मका भी माननेवाला क्यों न हो। इसके विरुद्ध जो चलेगा वह राजाकी अकृपाका पात्र होकर राजदंडका भागी होगा ।
एक दिन राजा राजमहलपर बैठे बैठे प्रकृतिकी शोभा देख रहे थे। इतनेमें एक बहुत बड़े बादलका अपने आप सुन्दर बनाव बन कर उनके देखते देखते नष्ट हो गया । यह देख उन्हें संसारकी भी यही लीला जान पड़ी। वे उसी समय अपने पुत्रको राज्यभार सौंप कर वनके लिए रवाना हो गए और जिनदीक्षा स्वीकार कर तपश्चर्या करने लगे।
उन्निद्रहेमनवपङ्कजपुञ्जकान्ती
पर्युल्लसन्नखमयूखशिखाभिरामौ । पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत्तः
पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ॥३६॥ भ०६