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भक्तामर - कथा ।
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भारतवर्षमें बनारस प्रसिद्ध नगर है । विद्वानोंका वह घर है । जिधर देखो उधर ही ब्राह्मणों के मुँह से वेदध्वनि सुनाई पड़ती है । नगर बड़ा सुन्दर है । उसमें बड़े बड़े धनवान् रहते हैं । उनके गगनचुम्बि महलों को देख कर स्वर्गकी याद हो उठती है ।
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उसके राजाका नाम भीमसेन है । वे बुद्धिशाली और प्रजाके अत्यन्त प्यारे हैं । सुन्दरता उनके चरणोंकी दासी है । मानों संसार में चन्द्रमा, कमल आदि जितने सुन्दर सुन्दर पदार्थ हैं, उन्हींके द्वारा उनके शरीरकी ब्रह्माने सृष्टि की है ।
एक बार अकस्मात् उनके कोई ऐसा पापका उदय आया, जिससे उनकी सब सुन्दरता नष्ट हो गई; और उनका सारा शरीर अग्नि-ज्वालासे झुलसे हुएकी भाँति हो गया। उनके पास अनन्त वैभव, निष्कं - टक राज्य, और एकसे एक बढ़कर सुन्दर स्त्रियां थीं । पर वह एक रूपके बिना उन्हें निस्सार जान पड़ने लगा । उन्हें दिन-रात इसी विषयकी चिन्ता रहने लगी ।
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एक दिन उनने सुना कि नगरके बाहर एक तपस्वी मुनि आए हैं । उनका नाम पिहिताश्रव है । मुनिका आगमन सुन कर उनको बड़ी प्रसन्नता हुई । वे उनकी वन्दना के लिए गए । मुनिराजकी बहुत श्रद्धा के साथ उन्होंने पूजा, स्तुति की। इसके बाद समय देख कर उनने पूछा कि प्रभो ! पहले मैं बहुत सुन्दर था । लोग मेरे रूपको देख कर मुझे कामदेव कहा करते थे; पर कुछ दिनोंसे न जाने एकाएक क्या हो गया, जिससे मेरी यह हालत हो गई । इसलिए कोई ऐसा उपाय बतलाइए जिससे मेरी चिन्ता मिट कर मैं सुखी हो सकूँ । जैसा आप कहेंगे उसे करनेके लिए मैं तैयार हूँ । मुझ पर प्रसन्न होकर कृपा कीजिए ।