________________
भीमसेनकी कथा ।
७९ स्वर्गापवर्गगममार्गविमार्गणेष्टः
सद्धर्मतत्त्वकथनैकपटुस्त्रिलोक्याः। दिव्यध्वनिर्भवति ते विशदार्थसर्वभाषास्वभावपरिणामगुणैः प्रयोज्यः ॥ ३५॥
हिन्दी-पद्यानुवाद । त्रैलोक्यकी सब प्रभामय वस्तु जीती,
भामण्डल प्रबल है तव नाथ! ऐसा। नाना प्रचण्ड रवि-तुल्य सुदीप्तिधारी
है जीतता शशि सुशोभित रातको भी॥ है स्वर्ग-मोक्ष-पथदर्शनकी सुनेता, __ सद्धर्मके कथनमें पदु है जगोंके। दिव्यध्वनि प्रकट अर्थमयी प्रभो! है
तेरी; लहे सकल मानव बोध जिस्से ॥ 'प्रभो! त्रिभुवनके सब कान्तिमान् पदार्थोकी कान्तिको जीतनेवाली, आपकी चमकती हुई भामण्डलकी अनन्त प्रभा, एक साथ ऊगे हुए अनेक सूर्योंके सदृश होकर भी अपनी ज्योतिसे शीतल चाँदनी रातको पराजित करती है । अर्थात् आपकी प्रभा सूर्यसे अधिक तेजस्विनी होकर भी लोगोंको सन्ताप देनेवाली नहीं है-बहुत शीतल है।
नाथ ! स्वर्ग और मोक्षके मार्गको बतानेवाली तथा त्रिभुवनके लोगोंको श्रेष्ठ धर्म-तत्त्वका उपदेश करनेमें समर्थ आपकी दिव्यध्वनि स्वभावसे ही सब भाषाओंमें पदार्थोंका विस्तृत स्वरूप वर्णन करनेवाली है । अर्थात् आपकी दिव्यध्वनिका परिणमन सब प्रकारकी भाषाओंमें होता है । उसे सब प्राणी अपनी अपनी भाषामें विस्तारके साथ समझ लेते हैं । यह आपका अचिन्त्य प्रभाव है।
भीमसेनकी कथा । इन श्लोकोंके मंत्रोंकी आराधनासे नष्ट हुई सुन्दरता फिरसे प्राप्त हो जाती है। उसकी कथा नीचे लिखी जाती है।
.
.