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________________ ७८ भक्तामर-कथा। अच्छा होगा । भगवन् ! यह तो बहुत साधारण बात है। इसका आराम हो जाना कोई बड़ी बात नहीं । आप भक्तामरकी आराधना करके महारानीके शरीरका स्पर्श कीजिए । ऐसा करनेसे बहुत शीघ्र रानी स्वस्थ हो जायगी । इतना कह कर देवी अपने स्थान पर चली गई और मुनिराज सो रहे । प्रातःकाल महाराज मुनिराजके पास गए और उनसे अपनी बातका उत्तर पानेकी प्रार्थना की । मुनिराजने कहा-आप महारानीको यहीं बुलवा लीजिए, मैं यहीं उनका इलाज करूँगा । उसी समय महारानी महलसे बुलवाई गई। वे आकर हाथ जोड़ कर मुनिराजके सामने बैठ गई। इसके बाद मुनिराजने मंत्रकी आराधना करके रानीके शरीरको छुआ | उनके छूनेके साथ ही रानीका सारा शरीर स्वस्थ हो गया। उसमें वह दुर्गन्ध, वह विवर्णता अब न रही। वह तपाये हुए सोनेकी भाँति बन गया । यह देख राजा और रानीको बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने मुनिराजके पास अपनी बहुत बहुत कृतज्ञता प्रकाश की। राजाने अपने वचनोंका पालन किया । वे जैनी हो गए। उनके साथ और भी बहुतसे लोगोंने मिथ्यात्व छोड़ कर पवित्र जिनधर्म स्वीकार किया। धर्मकी अत्यन्त प्रभावना हुई । शुम्भप्रभावलय भूरिविभा विभोस्ते ___ लोकत्रयद्युतिमतां द्युतिमाक्षिपन्ती । प्रोद्यदिवाकरनिरन्तरभूरिसंख्या दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोमसौम्याम्॥३४॥
SR No.002454
Book TitleBhaktamar Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherJain Sahitya Prasarak karyalay
Publication Year1930
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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