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नरपाल ग्वालकी कथा ।
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नमें मत्त होकर तू उसे ही मत भूल जाना । ध्यान रखना कि बिना जड़के डालियाँ नहीं हुआ करती हैं।
इस समय सिंहपुरके राजाकी मृत्यु हो गई। उनके कोई पुत्र नहीं था । अब राज्यका मालिक कौन हो, इस बातकी राजमंत्रियोंको बड़ी चिंता हुई । आखिर यह निश्चय किया गया कि महाराजकी हथिनीको जलसे भरा सोनेका कलश देकर छोड़ देनी चाहिए । वह उस जलसे जिसका अभिषेक करे उसको राजा बनाना चाहिए। यह बात सबके ध्यानमें आ गई । वैसाही किया गया । हथिनीको कलश देकर वह छोड़ दी गई । हथिनी धीरे धीरे वहीं पहुंच गई जहाँ नरपाल बैठा हुआ था। हथिनीने जाकर उसीका अभिषेक कर दिया। उसी समय जयध्वनिसे आकाश गूंज उठा । नरपाल लाकर राज्यसिंहासन पर बैठा दिया गया। नरपाल राजा तो बन गया, पर उसके विरुद्ध बहुतसे राजे हो गए । कारण एक नीच कुलका मनुष्य क्षत्रियों पर शासन करे यह उन्हें कैसे सहन हो सकता था। वे उसके साथ युद्ध करनेको तैयार हो गए। नरपाल भी पीछा पग न देकर आगे बढ़ा और मंत्रकी आराधना कर चक्रेश्वरीकी सहायतासे उसने सब शत्रुओंको वश कर अपनी विजयपताका सर्वत्र फहरा दी।
जिन भगवानकी स्तुतिके प्रभावसे जब स्वर्गकी सम्पदा भी प्राप्त हो सकती है तब उसके सामने राज्य-विभूतिका मिल जाना तो साधारण बात है। जिस रत्नकी इतनी कीमत है कि उसके द्वारा तीनों लोक खरीद किये जा सकते हैं उसके द्वारा भूसेका खरीदना दुर्लभ नहीं । तब जो सुख चाहते हैं उन्हें धर्मका पालन अवश्य ही करना चाहिए । ___धर्मके प्रभावसे एक ग्वालेकी इतनी उन्नति देख कर बहुतोंने जिनधर्म स्वीकार किया । धर्मकी बड़ी प्रभावना हुई।