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भक्तामर कथा ।
फल उदय आया है । राजा बोले - पापिनी ! तूने बहुत बुरा काम किया । तू नहीं जानती कि महामुनिकी निन्दा करनेसे नरकोंमें जाना पड़ता है । नरकका नाम सुनते ही रानी काँप उठी । वह उसी समय पालखी में बैठ कर मुनिराजके पास पहुँची और उन्हें बड़ी भक्तिसे प्रणाम कर बोली- नाथ ! मैंने अज्ञानके वश होकर आपकी बहुत निंदा की थी । मैं अपना बुरा-भला स्वयं नहीं जानती थी । यही कारण था कि मुझ पापिनीसे आपका गुरुतर - अपराध बन पड़ा । नाथ ! मुझपर क्षमा करके मेरी रक्षा कीजिए । क्योंकि साधुलोग बड़े ही क्षमाशील होते हैं, और वे क्षमा ही करते हैं । रानीने मुनिके उपदेशानुसार सम्यग्दर्शन - पूर्वक गृहस्थधर्म ग्रहण किया । इसके बाद रानी मुनिको नमस्कार कर जब अपने महल पर जाने लगी तब मुनिराजने उसे इतना और समझा दिया कि तुम कुछ दिनों तक प्रतिदिन हमारे पास आकर इस बीमारी की शान्तिके लिए मंत्रा हुआ जल छिड़कवा जाया करो | रानीने वैसा ही किया । कुछ दिनों बाद उसकी हालत सुधरते सुधरते फिर जैसीकी तैसी हो गई । यह देख महाराज और रानी बहुत प्रसन्न हुए । धर्मके प्रभावसे रानीकी यह दशा देख कर बहुत से लोगोंकी श्रद्धा जैनधर्म पर बढ़ गई और बहुतों ने पवित्र धर्मकी शरण ग्रहण की।
मुनि दया करके रानीसे वोले- देखो ! धर्मसे राज्य मिलता है, धर्मसे सब सम्पत्ति प्राप्त होती है, धर्मसे गुरुतरसे गुरुतर पाप नष्ट होते हैं, धर्मसे स्वर्ग मिलता है, और धर्मसे ही मोक्ष मिलता है । इसलिए तुम सम्यग्दर्शन - पूर्वक गृहस्थधर्म स्वीकार करो । उससे तुम्हारा यह सब दुःख शान्त होगा । इतना कह कर मुनिने