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. भक्तामर-कथा।
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भक्तामर स्तोत्रका अचिंत्य प्रभाव है । उससे पुत्र-प्राप्ति होती है, स्वर्ग-प्राप्ति होती है और संसारमें ऐसी कोई बात नहीं रह जाती जो उसके प्रभावसे प्राप्त न हो सके। यह जान कर भव्य पुरुषोंको इसकी
आराधना अवश्य करते रहना चाहिए । इस प्रकार मुनिके कहे अनुसार 'पुत्र-लाभ देख कर राजाकी मुनि पर खूब श्रद्धा हो गई। इसके बाद उनने जैनधर्म भी स्वीकार कर लिया। उनकी देखा-देखी और भी बहुतोंने पवित्र जैनधर्मकी शरण ली।
उच्चैरशोकतरुसंश्रितमुन्मयूख___ माभाति रूपममलं भवतो नितान्तम् । स्पष्टोल्लसत्किरणमस्ततमोवितानं बिम्बं रवेरिव पयोधरपार्श्ववर्ति ॥२८॥
हिन्दी-पद्यानुवाद । नीचे अशोक तरुके तन है सुहाता,
तेरा विभो ! विमल रूप प्रकाशकर्ता . फैली हुई किरणका, तमका विनाशी,
मानों समीप घनके रवि-बिम्ब ही है ॥ प्रभो ! जिसकी किरणें ऊपरकी ओर फैल रही हैं ऐसा आपका उज्ज्वल शरीर उन्नत अशोक वृक्षके नीचे बहुत ही सुन्दर जान पड़ता है; मानों जिसकी किरणें सब दिशाओंको आलोकित कर रही हैं ऐसा अन्धकारको नाश करनेवाला सूर्यबिम्ब मेघोंके आसपास शोभ रहा हो।
रूपकुंडलाकी कथा। . इस कान्यके मंत्रकी आराधना करनेसे शोक नष्ट होता है और
रोगादिकका नाश होकर शरीर सुन्दर हो जाता है । इसकी कथा नीचे लिखी जाती है।