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हरि राजाकी कथा।
करेगा ! कुवैद्यों द्वारा ही यदि रोग नष्ट हो जाय, तो संसारमें फिर सुवैद्योंकी कुछ जरूरत न रहे । पर ऐसा नहीं होता । ___ संयोग-वश एक दिन राजाको मुनिचन्द्र नामक मुनिके दर्शन हो गए। राजाने उन्हें प्रणाम कर पूछा-महाराज ! मेरे पुत्र नहीं होता, इसकी मुझे दिनरात चिन्ता रहती है । बतलाइए मुझे पुत्रका मुँह देखनेको मिलेगा या मेरे बाद मेरे कुलकी ही समाप्ति हो जायगी ? _ मुनिने कहा-राजन् ! अपने अपने कर्मों का फल सभीको भोगना पड़ता है। वह तुम्हें भी भोगना पड़े तो इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं। इसमें सन्देह नहीं कि पापका फल बिना भोगे नहीं छूटता । पर हाँ,. वह पाप, पुण्य और धर्मके द्वारा नष्ट हो सकता है। इसलिए तुम 'को विस्मयोत्र ' इस श्लोकके मंत्रकी आराधना करो। संभव है धर्मके प्रभावसे तुम्हारा मनोरथ सिद्ध हो जाय । यह कह कर मुनिने राजाको मंत्र सिखा दिया । राजा मुनिकी कृपा लाभ कर बहुत प्रसन्न हुए । इसके. बाद मुनिको प्रणाम कर वे अपने महल पर लौट आए । ___ राजाने मंत्रकी आराधना शुरू करदी । कुछ दिन बीतने पर एक दिन देवीने आकर राजाको एक स्वर्गीय फूलोंकी माला देकर कहाइस मालाको अपनी रानीके गलेमें पहना कर उसके साथ सहवास' करना । इसके प्रमावसे तुम्हें अवश्य पुत्र प्राप्ति होगी । यह कह कर देवी अन्तर्ध्यान हो गई। ___ कुछ समय बीतने पर रानीने पुत्र रत्न प्रसव किया। यह देख राजाको. बहुत आनन्द हुआ । सारे शहरमें खूब उत्सब मनाया गया। खूब दान दिया गया । दीन-दुखियोंकी आशाएँ पूरी की गई । पुत्र-जन्म वैसे ही प्रसन्नताका कारण होता है, फिर सब तरह निराश हुएके यहाँ यदि पुत्र-जन्म हो, तब तो उसके आनन्दका पूछना ही क्या ?