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जितशत्रुको कथा।
वाया और उसके जलको मंत्र कर रानियोंकी आँखों पर छींटा। उनका जल छींटना था कि वह न्यन्तर चीख मार कर उसी समय भाग गया। जो प्रचण्ड मोह-शत्रुको भी नष्ट कर देते हैं, उनके रहते बेचारे व्यन्तरकी क्या हिम्मत जो वह उनके सामने ठहर सके । जो अग्नि बड़े बड़े पर्वतोंको देखते देखते जला कर खाक कर डालती है उसके सामने घास-फँसकी कौन गिनती है ? । ___ मुनिराजका यह प्रभाव देख राजाने उनका बहुत उपकार मान कर कहा-भगवन् ! आप धन्य हैं, आप ही सच्चे और सर्वोत्तम साधु हैं, आपका ज्ञान, आपका पाण्डित्य अपूर्व है; और वह धर्म भी संसारके सब धर्मोंमें अपूर्व है जिसे आप धारण किये हुए हैं। .
इसके बाद राजाने मुनिसे पवित्र जिनधर्मकी दीक्षाके लिए प्रार्थना कर जैनधर्म स्वीकार कर लिया । सच है-बिना महत्त्वकी बातोंको देखे कोई धर्मका ग्राहक नहीं होता । एक प्रतापी राजाको जिनधर्म धारण करते देख-कर और भी बहुतसे लोगोंने उसे स्वीकार किया । धर्मकी खूब प्रभावना हुई।
तुभ्यं नमस्त्रिभुवनार्तिहराय नाथ !
तुभ्यं नमः क्षितितलामलभूषणाय । तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय तुभ्यं नमो जिनभवोदधिशोषणाय ॥२६॥
___ हिन्दी-पद्यानुवाद । त्रैलोक्य-आर्ति-हर नाथ ! तुझे नमूं मैं, हे भूमिके विमलरत्न ! तुझे नमूं मैं।