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जीवनन्दी मुनिकी कथा।
गुजरात देशमें देवपुर नामका एक सुन्दरपुर था । एक दिन विहार करते हुए जीवनन्दी नामके मुनि अपने संघके साथ इधर आ निकले । वे पास ही एक उपवनमें ठहरे । उन्हें जान पड़ा कि इस गाँवमें श्रावक लोग नहीं हैं | तब उन्होंने किसी एक मनुष्यसे पूछा कि इस शहरमें श्रावक लोग नहीं हैं क्या ? उसने कहा कि पहले तो यहाँ बहुतसे श्रावक लोग रहते थे; परन्तु बहुत दिनोंसे इधर उनके गुरुओंका आना-जाना बन्द हो जानेके कारण दूसरे धर्मवालोंके उपदेशसे वे लोग शैव हो गए हैं। .. यह सुन कर मुनि अपने संघको लिए हुए वहाँके एक शिवमन्दिरमें जाकर ठहर गए । जो धर्मकी प्रभावनाके चाहनेवाले होते हैं, वे उचित या अनुचित स्थानका विचार नहीं करते । उन्हें अपने कामसे मतलब रहता है। ऐसे लोग अपने पवित्र धर्मका नाश नहीं सह • सकते । और थोड़े बहुत सावद्यके बिना धर्मकी प्रभावना भी नहीं होती।
जैनमुनियोंको शिवमन्दिरमें आये हुए देख कर शैव लोग बहुत प्रसन्न हुए । सच है-एक दूसरे धर्मके माननेवालेको अपनेमें शामिल होते हुए देखकर किसे प्रसन्नता नहीं होती ? वे लोग परस्परमें कहने लगे कि, देखो, शिवजीका कितना प्रभाव है, जो जैन-साधु भी शिवमन्दिरमें आ गये । उन्हें देखनेके लिए बहुतसे लोग एकत्रित हो गये । उन्हें देख कर मुनिराज बोले-भाइयो ! संसारमें जितने धर्म हैं उन सबमें जिनधर्म ही एक ऐसा धर्म है जिसके द्वारा स्वर्ग-मोक्षकी प्राप्ति होती है । जैनधर्ममें जैसा दया पालन करना बतलाया गया है वैसा किसी धर्ममें नहीं बतलाया गया है । सब धर्मोकी भींत कुछ न कुछ स्वाथको लिए हुए खड़ी की गई है; पर एक जैनधर्म ही ऐसा धर्म है जिसमें स्वार्थका नाम भी नहीं । और सब देवोंमें जिनदेव ही सर्वोत्कृष्ट देव