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नामराजकी कथा।
भी नहीं सकते । यही कारण था कि वे राजाके प्रश्नका भावी फल नहीं बता सके। ___ उस समय विद्यानन्दी नामके एक महामुनि नागपुरीमें विद्यमान थे। वे सब विषयोंके बहुत अच्छे विद्वान् थे । उन्होंने राजाके प्रश्नकी चर्चा सुन कर भक्तामर स्तोत्रकी भक्तिपूर्वक आराधना की और उसके प्रभावसे प्रत्यक्ष हुई देवी द्वारा सब बातें जान ली।
इसके बाद वे एक दिन राजसभामें जाकर सब लोगोंके सामने राजासे बोले-राजन् ! तुम्हारे प्रश्नका उत्तर ज्योतिषी लोग तो दे नहीं सके, पर मैं देना चाहता हूँ। सुनिए, आजसे ठीक बारहवें दिन सबेरे ही महारानीके पुत्र उत्पन्न होगा । उसके नेत्र तीन होंगे । वह बड़ा बलवान होगा; परन्तु इसके साथ ही आपका प्रधान हाथी मर जायगा । इतना कह कर मुनि चुप हो गए। ___ मुनिकी भविष्यवाणी सुन कर ब्राह्मण लोग उनकी दिल्लगी उड़ाने लगे। वे बोले-देखो इस क्षपणककी धृष्टता, जो पीठ पीछेकी बात को तो जान नहीं सकता और चला भविष्य कहने ! मुनि इसका कुछ उत्तर न देकर चल दिए। यह देख ब्राह्मणोंको भी चुप रह जाना पड़ा। ___ आखिर बारहवें दिन प्रातःकाल ही रानीने पुत्र-रत्न प्रसव किया। उसके तीन नेत्र थे । वह बहुत तेजस्वी भी था। इसके साथ ही उधर राजाके प्रधान गजराजकी भी मृत्यु हो गई। मतलब यह कि मुनिराजने जो जो बातें बतलाई थीं, वे सब अक्षरशः सत्य हो गई। सच है पूर्णज्ञानीका कहा कभी मिथ्या नहीं होता। __ यह देख राजाने मुनिराजकी बहुत प्रशंसा कर कहा-ऐसे साधु
ओंको धन्य है, ये ही सर्व-श्रेष्ठ साधु हैं और इन्हींमें पूर्णज्ञानका साम्राज्य अधिष्ठित है।