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भक्तामर-कथा ।
हिन्दी - पद्यानुवाद | जो ज्ञान निर्मल विभो ! तुझमें सुहाता, भाता नहीं वह कभी परदेवतामें । होती मनोहर छटा मणिमध्य जो है, सो काँचमें नहिं; पड़े रवि- बिम्बके भी ॥
नाथ ! लोक और अलोकमें स्थान करके जो ज्ञान आपमें शोभाको प्राप्त होता है.. वह हरि, हर, ब्रह्मा आदि देवोंमें कभी नहीं शोभता । जो तेज एक महामणिको प्राप्त होकर महत्त्व प्राप्त करता है, वह महत्त्व बहुत किरणोंवाले काँचके टुकड़ेमें उसे प्राप्त नहीं हो सकता ।
नामराजकी कथा ।
इस श्लोक के मंत्री आराधना द्वारा जिसने फल पाया, उसकी कथा लिखी जाती है
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नागपुरी नामकी एक सुन्दर पुरी है । उसके राजाका नाम नामराज है । वे बड़े बलवान और बुद्धिमान हैं। उन्होंने सब शत्रुओंको पराजित करके अपने राज्यको निष्कण्टक बना लिया है । उनकी महारानीका नाम विशाला है । वे बड़ी सती, पतिव्रता, शीलसौभाग्य आदि श्रेष्ठ गुणोंसे युक्त हैं और बहुत सुन्दरी हैं । देव - कन्याएँ भी उनका रूप देख कर लज्जित हो जाती हैं। रानी इस समय गर्भ - भारसे दुखी है | सच है प्रसवसे कौन महिला दुःखं नहीं उठाती ।
महाराजने रानीको गर्भवती देख कर ज्योतिषियोंको बुला कर पूछाआप लोग बतलाइए कि, महारानीके पुत्र होगा या पुत्री ? बेचारे ज्योतिषी नाम - मात्रके ज्योतिषी थे । वे ऐसे बड़े पंडित नहीं थे जो राजाके पूछे प्रश्नका ठीक ठीक उत्तर दे सकते । इस कारण वे सबके सब चुप हो रहे । उनसे कुछ उत्तर देते नहीं बना । जिनका जिस विषयमें ज्ञान ही थोड़ा होता है वे उस विषयका पूरा उत्तर दे