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लोकपालकी कथा |
एक दिन विशाला के राजा लोकपाल शत्रुको जीता पकड़लानेकी इच्छासे सेना लेकर रातही में शत्रु पर जा चढ़े। रास्तेमें घोर अंधकार के कारण सारी पृथ्वी अन्धकारमय हो रही थी। ऐसी दशामें महाराजको एक पैर भी आगे चलना कठिन हो गया । उनकी सब सेना थोड़ी दूर जाकर अन्धकारके कारण रास्ता दिखाई न पड़नेसे एक जगह खड़ी हो गई ।
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लक्ष्मणके पास देवीका दिया हुआ वह महारत्न था । उसे उसने भक्तामर के द्वारा मंत्र कर आकाशमें फेंका। देखते देखते संसारको प्रकाशित करनेवाले चंद्रमाका उदय हो गया । एकाएक इस आश्चर्यको देख कर राजा मनमें बहुत प्रसन्न हुए । लक्ष्मणने उनकी बड़े मौके पर सहायता की । उससे महाराजने संतुष्ट होकर लक्ष्मणको अपने राज्यका आधा हिस्सा दे डाला |
इसके बाद महाराजने आगे बढ़ कर दिग्विजय किया । बड़े बड़े बलवान शत्रुओंको उन्होंने अपने वश किए और फिर अतुल सम्पदाके साथ वे अपनी राजधानीमें लौट आए ।
जो लोग वीतराग भगवानकी स्तुति भक्तिभावसे पढ़ा करते हैं, उनके सब विघ्न नष्ट होते हैं, उनका मानसिक अंधकार अर्थात् अज्ञान नष्ट होता है और वे अपनी मनचाही वस्तुको प्राप्त करते हैं । अर्थात् धर्म प्रभावसे सब कुछ हो सकता है ।
ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाशं नैवं तथा हरिहरादिषु नायकेषु ।
तेजः स्फुरन्मणिषु याति यथा महत्त्वं नैवं तु काचशकले किरणाकुलेऽपि ॥ २० ॥