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आछंड मंत्रीकी- कथा |
माताकी आज्ञा स्वीकार कर आछंड उसी समय शत्रुपर धावा करने के लिए अपनी बहुत सी सेनाको लेकर चल पड़े। उनकी सेना इतनी थी कि उसके भारसे पृथ्वी भी काँपती थी ।
पृथ्वीसेनको आछंडकी चढ़ाईका हाल मालूम होते ही वे भी युद्धके लिए तैयार हो गए। दोनों ओरकी सेनाकी मुठभेड़ हुई । घोर युद्ध मचा। हजारों वीर मारे गए। खूनकी नदी बह निकली । कई दिनोंतक युद्ध होता रहा । आखिर विजय लक्ष्मी आछंडको प्राप्त हुई । उन्होंने एक बड़े भारी शत्रुको पराजित कर पृथ्वी पर अपना प्रभाव खूब फैला दिया । सच है - बलवान से निर्बल पराजित होते ही हैं । इसके बाद आछंड बड़े बाजे-गाजे के साथ वन्दियों द्वारा अपना यशोगान सुनते हुए अपनी राजधानी लौट आए । प्रजाने उनका बहुत सम्मान किया, खूब उत्सव मनाया ।
देखिए ! कहाँ तो मंत्रीपद ! कहाँ छोटेसे राज्यका मिलना ! और कहाँ इतने बड़े भारी शत्रुका वश करना ! यह सब भक्तामर सदृश पवित्र स्तोत्रकी आराधनाका फल है । जो भव्य ऐसे पावन स्तोत्रकी प्रतिदिन भक्ति और श्रद्धा आराधना करते हैं, उनके लिए संसार में कोई वस्तु कष्ट प्राप्य नहीं है ।
किं शर्वरीषु शशिनाह्नि विवस्वता वा युष्मन्मुखेन्दुदलितेषु तमस्सु नाथ । निष्पन्नशालिवनशालिनि जीवलोके
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कार्यं कियज्जलधरैर्जलभारनम्रः ॥ १९ ॥ हिन्दी - पद्यानुवाद 1 क्या भानुसे दिवसमें, निशिमें शशीसे, तेरे प्रभो, सुमुखसे तम नाश होते ।