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कर कि, सब ओरसे निराश हुए जीवोंको धर्म ही एक आशास्थल रह जाता है, ' नित्योदयं ' इस लोककी समंत्र आराधना की । उसके प्रभावसे एक देवसुंदरीने आकर मंत्रीको चन्द्रकान्तमणि और विष नष्ट करनेवाला एक रत्न दिया, और कहा कि इसके प्रभावसे तुम्हें रास्ता मिल जायगा । इसके अतिरिक्त और कभी तुम्हें कष्ट उठाना पड़े तो तुम मुझे याद करना । इतना कह कर देवी अपने स्थान पर चली गई ।
उस मणिके प्रभावसे वे अपने परिचित रास्ते पर आ पहुँचे । वहाँसे आगे चल कर उन्होंने बड़े बड़े बलवान राजोंको पराजित किया, अनेक देश अपने वश किये और अन्तमें वे एक बड़े भारी अभिमानी और पराक्रमी मलय नामके राजाको जीत कर बहुत कुछ सम्पत्ति और चतुरंग सेना सहित अपने राज्यमें लौट आए। इसके बाद उन्होंने पवित्र आशीर्वादकी इच्छासे अपनी माताके पास जाकर माताको प्रणाम किया ।
भक्तामर-कथा ।
माता पुत्रके सुख- पूर्वक लौट आने से बहुत प्रसन्न हुई । वह पुत्रको आशिष देकर बोली- पुत्र ! इसमें कोई संदेह नहीं कि तुम बड़े बलवान हो, पर तुम्हारे ऐसे प्रचंड बलको देख कर एक बात बहुत खटकती है । वह यह कि तुमने अभी तक जितने राजोंको जीते हैं, वे सब साधारण राजे हैं । निर्बलोंको पराजित करनेसे महत्व प्रगट नहीं होता । वह बल ही क्या, जिससे वनमें मृगोंको मारनेवाला केसरी सिर पर खड़ा रहे और उसका कुछ प्रतिकार न किया जाकर छोटे छोटे जीव मारे जायँ । तुम्हारे सिर पर भी अभी एक बड़ा बलवान राजा खड़ा है । वह तुम्हारा बड़ा भारी दुश्मन है । तुम्हें उचित है कि तुम उसे पराजित करके अपने वश करो। वह भृगुकच्छ देशका स्वामी पृथ्वीसेन है ।