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'आछंड मंत्रीकी कथा।
अच्छे प्रकाशित करे जगको, सुहावे,
अत्यन्त कान्तिधर नाथ, मुखेन्दु तेरा ॥ हे नाथ ! आपका अत्यन्त कान्तिमान मुख-कमल सारे संसारको प्रकाशित करनेवाला अपूर्व चन्द्रमा है-चन्द्रमासे कहीं बढ़कर है; क्योंकि चन्द्रमाका उदय निरन्तर नहीं रहता, पर आपका मुख-चन्द्र सदा उदित रहता है । चन्द्रमा अन्धकार नष्ट कर सकता है. पर मोहान्धकार नहीं; और आपका मुख-चन्द्र दोनोंको नष्ट करनेवाला है। चन्द्रमाको राहु और मेघ धर दबाते हैं, पर आपके मुख-चन्द्रका ये कुछ नहीं कर सकते।
आछंड मंत्रीकी कथा। इस श्लोकके मंत्रसे सब प्रकारके दोष नष्ट होते हैं। इसका प्रभाव बतलानेके लिए इसकी कथा लिखी जाती है- गुजरात देशके अन्तर्गत पाटन नामका एक मनोहर शहर है । उसके राजाका नाम कुमारपाल है । राजमंत्रीका नाम आळंड है। वह बुद्धिमान और गुणज्ञ है । उसकी जिनधर्म पर बहुत श्रद्धा है । वह तीनों काल भक्तामर-स्तोत्रकी अत्यन्त भक्ति और श्रद्धाके साथ पाठ किया करता है। - राजा उसकी राजभक्ति पर बहुत प्रसन्न थे । इसलिए उन्होंने मंत्रीके गुणों पर मुग्ध होकर उसे पुरस्कारके रूपमें धनशाली लाइदेशका राज्य दे दिया । आछंड उसका नीतिके साथ पालन करने लगे।
एक बार आछेडको दूसरे देश पर चढाई करके बाहर जाना पड़ा । रास्तेमें भाग्यसे उनकी सेना मार्ग भूल कर एक बहुत ही भयानक, और सिंह, व्याघ्र, चीते, सूअर आदि हिंस्र जीवोंसे भरे हुए वनमें जा निकली । इस आकस्मिक विपत्तिके आनेसे उनकी सेनाके प्राण मुट्ठीमें आ गए । मंत्री महाशयको भी बहुत चिन्ता हुई, पर केवल चिन्ता करनेसे लाभ क्या हो सकता था ? आखिर उन्होंने यह विचार
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