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________________ ३२ भक्तामर-कथा। हैं, किसीको सँड़सीसे मुँह फाड़ फाड़ कर खन पिलाया जा रहा है, और कोई आगमें भूना जा रहा है ! इस प्रकार आश्चर्य-भरी घटनाको देखते ही राजकुमार डरके मारे चिल्ला उठा । भयसे उसकी चेतना लुप्त होने लगी। वह गश खाकर जमीन पर गिर पड़ा। थोड़ी देर बाद सायंकालीन ठंडी हवाके लगनेसे उसे कुछ होश हुआ । उसने आँख खोल कर देखा तो उसे वहाँ सिवा मुनिके और कोई नहीं दीखा; पर तब भी वह भयके मारे काँप रहा था। ___ मुनिने उसकी यह हालत देख कर उससे इस प्रकार डर जानेका कारण पूछा। उसने वहाँ जो कुछ देखा था वह सब मुनिसे कहः दिया। मुनिने कहा-संभव है, यह सब भूतोंकी लीला हो । बिना उनके ऐसा और कौन कर सकता है। इसके बाद मुनिने उसे उपदेश दिया, धर्मका स्वरूप समझाया, पुण्य-पापका फल कहा, और आत्मा और लोक-परलोकका अस्तित्व सिद्ध कर बताया। राजकुमार पर मुनिराजके उपदेशका बहुत प्रभाव पड़ा। उससे वह चार्वाक मतको छोड़ कर जैनी बन गया । इसके बाद वह मुनिराजको नमस्कार कर अपने. महल लौट आया। नित्योदयं दलितमोहमहान्धकारं गम्यं न राहुवदनस्य न वारिदानाम् । विभ्राजते तव मुखाब्जमनल्पकान्ति विद्योतयज्जगदपूर्वशशाङ्कबिम्बम् ॥ १८॥ हिन्दी-पद्यानुवाद। मोहान्धकार हरता, रहता उगा ही, जाता न राहु-मुखमें, न छुपे घनोंसे;
SR No.002454
Book TitleBhaktamar Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherJain Sahitya Prasarak karyalay
Publication Year1930
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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