________________
सुबुद्धि मंत्रीकी कथा।
उपाय न देख मन लगा कर भक्तामरकी खूब आराधना की। धर्मके अचिन्त्य प्रभावसे उसी समय चक्रेश्वरीने प्रगट होकर उस धूर्त कापालिकसे कहा___पापी यह तूने क्या ढोंग रचा है ? क्यों इन बेचारे भोले लोगोंको अपनी मायाजालमें फँसा रहा है ? तू नहीं जानता कि जिनभगवानका वेष उन्हींको शोभा देता है। दूसरा उसे कभी नहीं धारण कर सकता । क्या कभी हाथीका भार बैल भी उठा सकता है ? ध्यान रख, जो मायासे ठगे हुए जिन-रूपको ग्रहण कर फिर उसे छोड़ देते हैं, वे नियमसे दुस्तर संसाररूपी समुद्रमें अनन्तकालके लिए कूद पड़ते हैं।" इस प्रकार उसकी खूब भर्त्सना करके देवी बोली-पापी यदि तू अपने जीनेकी इच्छा करता है, तो इस धर्मात्मा सुबुद्धिके पाँवोंमें पड़ कर इससे क्षमा करा । क्योंकि इसीकी कृपासे आज पवित्र जिनधर्मकी हँसी होनेसे बची है। सिवा इसके तुझसे पापीकी कुशल नहीं है।
देवीके अप्रतिम तेजको देख कर कापालिकके तो होश उड़ मए । उसका सारा शरीर काँप उठा । देवीके कहे अनुसार वह हाथ जोड़कर सुबुद्धिके पाँवोंमें पड़ा और अपने अपराधकी क्षमा करा कर आगे ऐसे अनर्थके न करनेकी उसने प्रतिज्ञा की । ___ मंत्रीने धर्म-प्रभावनाका अच्छा अवसर देख कर भक्तामर स्तोत्रका प्रभाव सब लोगोंको कह सुनाया। विद्वान् लोग ऐसे मौकेको खोते नहीं है । क्योंकि वे समयके जाननेवाले होते हैं। सुबुद्धिके उपदेशका सारी सभा पर बहुत अच्छा असर पड़ा । राजा, कापालिक, तथा और बहुतसे लोग भक्तामरका प्रभाव सुन कर और आँखोंसे प्रत्यक्ष देख कर जैनी बन गए । धर्मकी खूब प्रभावना हुई।