________________
२२
भक्तामर-कथा।
हे त्रिभुवनके एक भूषण ! जिन राग-रहित तेजस्वी परमाणुओंके द्वारा आपका शरीर बना है, वे परमाणु संसारमें उतने ही हैं । यही तो कारण है कि संसारमें आपके समान सुन्दर किसी दूसरेका रूप ही नहीं है।
सुबुद्धिकी कथा। इस श्लोकके मंत्रकी आराधनासे सुबुद्धि नामके मंत्रीने फल प्राप्त किया था । उसकी कथा नीचे लिखी जाती है. भारतवर्षमें अंगदेश बड़ा प्रसिद्ध देश है। आस-पासके छोटे छोटे पर बहुत सुन्दर गाँवोंसे वह शोभित है। उसकी प्रधान राजधानी चम्पापुरी है। उसका राजा बहुत दानी, बुद्धिमान् और नीतिज्ञ था। उसका नाम कर्ण था । उसका मंत्री भी बड़ा गुणवान् और राजनीतिका अच्छा जानकार था। उसका नाम सुबुद्धि था । वह जिनधर्मका अतिशय भक्त था। भक्तामर स्तोत्र पर उसकी गाढ श्रद्धा थी, इसलिए वह उसकी निरंतर आराधना किया करता था ।
एक दिन एक धूर्त कापालिक बहुरूपियका रूप धारण कर राजसभामें आया और अपनी विद्याकी करामातसे वह कृष्ण, ब्रह्मा, शंकर, गणेश, कार्तिकेय, बुद्ध, क्षेत्रपाल आदिका रूप बनाकर नाचने लगा
और सारी सभाको रंजायमान करने लगा। सभाके लोग उसकी कुशलता देखकर बहुत खुश हुए और उसकी तारीफ करने लगे। ___यह सब तमाशा दिखा कर अन्तमें उसने जिनभगवानका रूप
लेना चाहा । सुबुद्धिको इससे बहुत दुःख हुआ । अपने धर्मकी इस तरह हँसी होना उसे सह्य नहीं हुआ । परन्तु वह करता भी क्या ? राजाके सामने वह बोल भी नहीं सकता था। और वह तो फिर एक विनोद था-सबके चित्तरंजन करनेका दृश्य था । इसलिए वह कुछ कहता भी, तो उसकी सुनता कौन ? उसने अपने धर्मकी रक्षाका कुछ