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कमदी सेठकी कथा।
मैं एक दिन यहाँके सब धर्मात्माओंका निमंत्रण करूँ । इसलिए एक बार तुम और यहाँ इसी रूपमें आनेकी कृपा करो तो बहुत अच्छा हो । ' तथास्तु' कह कर देवी चली गई। ___ अवसर देख कर कमदीने सारे शहरका निमंत्रण किया । महाराज प्रजापाल भी निमंत्रित किये गये । सुन्दरसे सुन्दर और स्वादिष्टसे स्वादिष्ट वस्तुएँ तैयार की गई । कामधेनुके दूधकी खीर बनवाई गई। फिर सबको बड़े आदर-विनयसे भोजन कराया गया। भोजन करके सब बड़े प्रसन्न हुए और शतमुखसे उस भोजनकी तारीफ करने लगे। - इसके बाद कमदीने देवीकी कृपासे प्राप्त हुआ धन महाराजको दिखलाया । महाराज कमदीके पास इतना अटूट धन देख कर बड़े खुश हुए, और यह कह कर वे चल गये कि इस धनको पात्र-दान, विद्यादान आदि परोपकारके कामोंमें तथा अपने लिये खब खर्च करना । यह सब धर्ममें तत्पर रहनेका फल है। इसलिए भव्य पुरुषोंको धर्मकी ओर सदा चित्त लगाना चाहिए ।
यैः शान्तरागरुचिभिः परमाणुभिस्त्वं
निर्मापितस्त्रिभुवनैकललामभूत तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां यत्ते समानमपरं न हि रूपमस्ति ॥ १२॥
___ हिन्दी-पद्यानुवाद । जो शान्तिके सुपरमाणु प्रभो, तनूमें
तेरे लगे, जगतमें उतने वही थे। सौन्दर्यसार, जगदीश्वर, चित्तहर्ता, तेरे समान इससे नहिं रूप कोई ॥